नई दिल्ली: (इंडिया टाइम 24 न्यूज़ से ज्योति मनराल की रिपोर्ट) देश में जारी लोकसभा चुनाव से सियासत गर्म है, सभी पार्टी नेता व कार्यकर्ता सत्ता में काबिज होने के लिए विभिन्न प्रकार की चुनावी जनसभाओं और रैलियों का आयोजन कर रहे हैं। चुनाव प्रचार व रैलियों के दौरान सभी नेता जनसभाओं को सम्बोधित करते हैं और चुनावी भाषण देकर जनता से वोट की अपील करते हैं। अब इस चुनावी माहौल में यह सब आम बात हैं। अब हम इसे राजनैतिक प्रोपगैंडा व चुनावी रणनीति भी कह सकते हैं । लेकिन आज हम वोटबैंक की राजनीति की बात नहीं करेंगे, आज हम बात करेंगे चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गए कोड ऑफ़ कंडक्ट यानी आचार संहिता की जिसका पालन करना सभी नेता व कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक हैं । यह आचार संहिता इसीलिए ही लागू की जाती हैं ताकि चुनाव बेहतर व सहज तरीके से पूर्ण हो, किसी प्रकार की मानहानि व विरोध न हो। परन्तु राजनेता आचार संहिता का उल्लंघन करने से बाज नहीं आते हैं , केवल चुनाव को ही मद्देनज़र रखते हुए कार्य करते हैं। वे यह भूल जाते हैं कि चुनाव शांतिपूर्वक ढंग से पूर्ण हो यह भी जरुरी है। वैसे तो ऐसे कई मामले सामने आये हैं जब नेताओं ने चुनाव प्रचार व प्रसार के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन किया हो लेकिन ज्यादातर मामलों में उन्हें चुनाव आयोग से क्लीन चिट मिल जाती है। परन्तु आज हम देश के प्रधानसेवक मोदी के बारे में बात करेंगे । प्रधानमंत्री मोदी ने चुनावी रैलियों के दौरान एक नहीं बल्कि नौ बार चुनाव आयोग द्वारा जारी किये गए आचार संहिता का उल्लंघन किया है और सभी मामलों में मोदी को चुनाव आयोग द्वारा क्लीन चिट भी मिल चुकी है। इसमें गुजरात के अहमदाबाद में 23 अप्रैल को मोदी द्वारा किया गया रोड शो व साथ ही कर्नाटक के चित्रदुर्ग में भाषण का मामला भी शामिल है। आपको बता दें कि हर मामले में मोदी को क्लीन चिट मिल जाने पर विपक्ष ने कई सवाल भी उठाएं है। लेकिन इस बार प्रधानमंत्री मोदी एक ऐसे बयान की वजह से विपक्ष के घेरे में आ चुके हैं जिसपर विपक्षी दल के नेताओं और कांग्रेस ने कड़े सवाल उठाएं है और सोशल मीडिया में भी उस कथित टिप्पणी की जमकर आलोचना की जा रही है। दरअसल यूपी में शनिवार को एक रैली के दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गाँधी पर टिप्पणी करते हुए उन्हें भ्रष्टाचारी नंबर वन कह दिया था
। इस बयान पर कई विपक्षी नेताओ ने जमकर विरोध जताया था। साथ ही आपको बता दें कि इस मुद्दे पर डीयू के 200 टीचर्स ने मोदी को एक आलोचना पत्र भी लिखा था जिसमें यह लिखा था की ऐसा बयान देकर मोदी ने प्रधानमंत्री पद की गरिमा को गिराया है। अब आपको बताते हैं की इस बयान पर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने क्या कहा, उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की टिप्पणी पर बात करते हुए यह तक कह दिया था कि वह अपना मानसिक संतुलन खो चुके है और उन्हें इलाज की जरुरत है, वहीँ बाद में इस कथन पर कटाक्ष करते हुए भाजपा के प्रवक्ता सच्चिदानंद उपासने ने उनसे मोदी से माफ़ी मांगने को कहा , साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि मोदी जब से प्रधानमंत्री बने है तभी से कांग्रेस उनपर घटिया दर्जे की टिप्पणी कर रही है। खैर इस चुनावी माहौल में आरोप – प्रत्यारोप का सिलसिला तो चलता ही रहता है, लेकिन इस बार विपक्ष दल इस मामले को हल्के में लेने के मूड में नहीं है। अब आपको बता दें की इस मामले की शिकायत कांग्रेस ने चुनाव आयोग से की थी व सोमवार को चुनाव आयोग से संपर्क कर इस मामले पर रिपोर्ट भी मांगी थी, साथ ही इस मुद्दे पर कार्रवाई करने की मांग भी की थी लेकिन इस मामले पर फैसला सुनाते हुए चुनाव आयोग ने कल यानी मंगलवार को कहा कि “पहली नज़र में हमने पाया कि भारतीय चुनाव आयोग के दिशा-निर्देशों के मुताबिक़ इस मामले में आचार – संहिता का उल्लंघन नहीं हुआ है” हालाँकि अब इस मामले पर प्रधानमंत्री मोदी को क्लीन चिट तो मिल चुकी हैं। लेकिन इस बार यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक जा पहुंचा हैं । दरअसल चुनाव आयोग द्वारा मोदी को हर बार क्लीन चिट मिलने के मामले को लेकर कांग्रेस सांसद सुष्मिता देव ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल किया हैं । इस याचिका में सुष्मिता देव ने कहा कि मोदी और शाह नफरत फैलाने वाले भाषण देते हैं और राजनीति में सेना का इस्तेमाल करते हैं और यह आचार- संहिता का उल्लंघन है। उन्होंने यह भी बताया कि मोदी और शाह द्वारा की गयी टिप्पणीयां स्पीच रिप्रजेंटेशन ऑफ़ पीपल एक्ट 1951 की धारा 123 A के तहत भ्रष्ट आचरण है । साथ ही उन्होंने कहा की चुनाव आयोग हर मामले में मोदी को क्लीन चिट दे रहा है , यह पक्षपात हैं। अब इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होगी और अपना फैसला जल्द ही सुप्रीम कोर्ट सुना सकता है।