नई दिल्ली । ( इंडिया टाइम 24 न्यूज से शम्भू नाथ गौतम ) देश में जिस प्रकार से राजनीतिक पार्टियों के बीच बढ़ रही तल्खी चिंता का विषय तो है ही साथ में लोकतंत्र के लिए बड़ा संकट भी है। मौजूदा दौर में नेताओं के बीच जुबानी हमले जिस प्रकार से हो रहे हैं, वह यह दर्शाता है कि अब राजनीति में उसूलों को अपनाकर सत्ता नहीं पाई जा सकती है। जैसे मंगलवार रात कोलकाता की सड़कों पर भाजपा और तृणमूल के बीच हुई हिंसक घटनाएं भारत जैसे विविधता वाले और लोकतंत्र देश को शर्मसार तो करती हैं साथ ही उग्र राजनीति को बढ़ावा भी देती हैं। एक माह से जारी भाजपा और तृणमूल के बीच जुबानी जंग आखिरकार हिंसा में बदल गई। कोलकाता में मंगलवार शाम सड़क पर हुई हिंसा को रोका जा सकता था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के बीच चल रही तनातनी आखिकार इतनी कैसे बढ़ गई कि इसे क्या रोक पाना अशंभव हो गया था। कोलकाता की सड़कों पर भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने खुलेआम हिंसा का सहारा क्यों लिया ? दोनों ओर से भड़काने की राजनीति क्यों की गई ? जब अमित शाह कोलकाता में रोड शो निकाल रहे थे तृणमूल कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने प्रदर्शन क्यों करवाए गए ? कार्यकर्ताओं को रोकने के बजाय ममता बनर्जी का ये कहना कि अमित शाह क्या कोई भगवान हैं, इनके खिलाफ कोई प्रदर्शन नहीं कर सकता है और पुलिस का पूरे घटना के दौरान मूक बने रहना कि यह साफ संकेत देता है कि यह हमला पूर्व नियोजित था। जब अमित शाह को अपने रोड शो के लिए इजाजत मिल गई थी तो पुलिस का पूरा इंतजाम क्यों नहीं किया गया। आज की राजनीति में कैमरा और माइक सामने आते ही बदजुबानी कुछ नेताओं को अपना नैतिक कर्तव्य लगने लगा है। लेकिन जो कल कोलकाता में हुआ उसको क्या कहा जाए ?