नई दिल्ली । (इंडिया टाइम 24 न्यूज से शम्भू नाथ गौतम) केंद्र की सत्ता में उत्तर प्रदेश हर बार निर्णायक की भूमिका निभाता रहा है। चाहे कोई भी दल क्यों न हो इस बात को नकार नहीं सकता कि केंद्र का रास्ता उत्तर से नहीं जाता है। साल 2014 में भाजपा को उत्तर प्रदेश में 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर जीत मिली थी। वहीं दो सीट अपना दल को मिली थी, जो कि भाजपा के साथ गठबंधन में शामिल था। इसको मिलाकर पार्टी को 73 सीटें इस राज्य से निकली थी। जिसके बदौलत भाजपा को जबरदस्त फायदा पहुंचा था और पूर्ण बहुमत के साथ भाजपा ने केंद्र में सरकार बनाई थी। 17वीें लोकसभा चुनाव में भले ही उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत भाजपा के आलाकमान ये कह रहे थे कि इस बार प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी पिछले लोकसभा चुनाव से भी बेहतर प्रदर्शन करेगी। लेकिन अंदर की कहानी कुछ और होती जा रही थी। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा का गठबंधन कहीं न कहीं रोड़ा अटका रहा था। गोरखपुर और फूलपुर में हुए लोकसभा के उपचुनाव भाजपा को इसके संकेत दे रहे थे। रविवार को आए एग्जिट पोल के नतीजांे ने उत्तर प्रदेश के समीकरण बदल दिए। प्रदेश में महागठबंन को लगभग 40 सीटें आती हुई दिखाई हैं । एग्जिट पोल के आंकड़े भाजपा को परेशान कर रहे हैं। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश में महागठबंधन उत्तसाहित है। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री समेत तमाम मंत्री अभी भी बयान दे रहे हैं कि हमको 70 सीटें मिलेंगी। वहीं कुछ मंत्री ये भी कह रहे हैं कि प्रदेश की भरपाई हम पश्चिम बंगाल और ओडिशा में कर देंगे।

पश्चिम बंगाल से आस–

इस बार भाजपा खासतौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार पर सबसे अधिक फोकस किया। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी से हुई आरपार की लड़ाई भाजपा के लिए फायदा पहुंचा सकती है। इसको हम दो रूपों में देख रहे हैं। पहला ये कि भारतीय जनता पार्टी इस राज्य में अपनी जमीन तलाश रही है। दूसरा ये कि अगर बंगाल पर हम कम से कम आधी सीट निकाल लेते हैं तो उत्तर प्रदेश की भरवाई भी हो जाएगी। बंगाल में 42 सीटों के लिए सात चरण में हुए चुनाव में पीएम मोदी और अमित शाह ने ताबड़तोड़ चुनावी रैली की। भाजपा का मानना है कि राज्य में 42 में से हम 20 सीट के आसपास जीत सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो पार्टी के लिए दोहरी खुशी लेकर आएगा। एक तो अगले साल बंगाल में विधानसभा चुनाव होने हैं। ऐसे में भाजपा की अभी से राज्य में जनाधार बढ़ जाएगा। दूसरा अगर उत्तर प्रदेश में पार्टी को पिछले बार की अपेक्षा कम सीटें मिलती है तो उसकी कमी भी नहीं अखरेगी।