नई दिल्ली। (इंडिया टाइम 24 न्यूज से शम्भू नाथ गौतम की एक्सलूसिव रिपोर्ट) आज कांग्रेस अपने इतिहास के सबसे खराब दौर में आ खड़ी हुई है। मौजूदा काल में उसके पास सहेजने के लिए कुछ बचा ही नहीं है, वह क्या फैसला ले वह खुद भी नहीं समझ पा रही है। पार्टी के सभी रणनीतिकारों में हताशा के सिवा कुछ है ही नहीं। आज पार्टी के जो हालात हैं वो साल 1977 में इंदिरा गांधी की हार के बाद की याद ताजा कर दी। 1977 के लोकसभा चुनाव बाद कांग्रेस बिखर गई थी, नौबत यहां तक आ गई थी कि इंदिरा की बात कोई भी सुनने को तैयार नहीं था। चुनाव के बाद आयोजित हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में इंदिरा गांधी हार से झल्ला गईं थी। आजादी के पहले स्वतंत्रता संग्राम की धुरी रही कांग्रेस आजादी के बाद अकेली सबसे बड़ी पार्टी थी । एक वक्त था जब इस पार्टी को केंद्र की सत्ता में पूरे 25 सालों तक कोई सीधी टक्कर देने वाला भी नहीं था, आज आलम ये है कि कांग्रेस आलाकमान क्या फैसला ले उसके खुद भी समझ में नहीं आ रहा है। लोकसभा चुनाव में मिली जोरदार शिकस्त के बाद आज कांग्रेस ने कार्यसमिति की बैठक बुलाई। इस बैठक को लेकर दो दिनों से अटकलें लग रही थी कि राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे सकते हैं। आज 11 बजे कांग्रेस ने वर्किंग कमेटी की बैठक बुलाई। यह बैठक लगभग साढ़े तीन घंटे चली। इस बैठक में यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, राहुल गांधी,प्रियंका गांधी एके एंटनी, समेत कई वरिष्ठ नेता मौजूद थे। पूरी बैठक राहुल के इस्तीफे के इर्द-गिर्द ही घूमती रही, बैठक को बहुत गोपनीय रखा गया और असमंजय की स्थित रही। कभी लगा कि राहुल ने इस्तीफा दे दिया तो कभी पार्टी की ओर से इसका खंडन होता रहा। आखिरकार कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुझे मन से शुरू होकर हताशा भरे माहौल में खत्म हो गई। इसके कुछ देर बाद कांग्रेस ने एक प्रेस काॅफ्रेंस की जिसमें रणदीप सिंह सुरजेवाला ने राहुल गांधी के इस्तीफे की खबर को खारिज करते हुए कहा कि अभी राहुल के नेतृत्व की पार्टी को जरूरत है। आखिर तक राहुल गांधी के इस्तीफे देने पर सस्पेंस बना हुआ है।

इंदिरा गांधी की हार के बाद कांग्रेस का पहली बार शुरू हुआ था पतन—

1975 में देश में लागू किया गया आपातकाल 19 माह चला। उसके बाद देश में 1977 में आम चुनाव कराए गए। इन चुनावों में इंदिरा गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली से हार गई थी। इसके बाद ही कांग्रेस का पहली बार पतन हुआ था। हार के सदमे में आकर इंदिरा किसी नेता की बात सुनने के लिए तैयार नहीं थी। उस समय पार्टी में एक मजाक चल रहा था कि जहां से संजय गांधी गए वहां से कांग्रेस हार गई। हालांकि इंदिरा गांधी इस बात को नहीं मानती थी। 22 मार्च को कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक में भी वह संजय गांधी का बचाव करती रहीं। शुरू में वह इस बैठक से दूर थीं और जानना चाहती थीं कि उनकी जरूरत है भी या नहीं, लेकिन बाद में उन्हें इसमें शामिल होने के लिए मना लिया गया। सिद्धार्थ शंकर रे, ने जब बंसीलाल को कांग्रेस से 6 साल के लिए निकालने और संजय के गुट के लोगों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की तो वह चीख चीख कर कहने लगीं थी, मुझे निकाल दो, मुझे निकाल दो। कांग्रेस वर्किंग कमेटी की बैठक से ठीक पहले गांधी ने एक और चतुराई भरी चाल चलते हुए कांग्रेस अध्यक्ष तथा वर्किंग कमेटी के सदस्यों को एक चिट्ठी लिखी। इसमें उन्होंने लिखा। इस हार की पूरी जिम्मेदारी अपने ऊपर लेती हूं। मेरी दिलचस्पी बहाने ढूंढने में या अपने को बचाने में नहीं है। 12 अप्रैल को वर्किंग कमेटी की बैठक हुई। मुख्यमंत्रियों और प्रदेश अध्यक्षों के मीटिंग में आने से यह बड़ा जमावड़ा बन गया। लेकिन इंदिरा गांधी का कोई अता पता नहीं था। सीताराम केसरी, जो बिहार से उनके साथियों में एक थे, ने पूछा कि उनके बिना हम बैठक कैसे कर सकते हैं । कुछ और लोगों ने भी यही सवाल उठाया। कुछ और लोगों ने कहा, हम सब एक सफदरजंग रोड चलते हैं और इंदिरा जी से भेंट कर उन्हें बैठक में आने के लिए मनाते हैं। कुछ समय तक बैठक में ऊहापोह की स्थिति रही। आखिरकार बरुआ, चह्वाण और कमलापति त्रिपाठी बैठक से बाहर आए और तेजी से एक कार की तरह बढ़े। वे इंदिरा गांधी के घर पहुंचे और उन्हें अपने साथ बैठक में लेकर आए। सभी ने हाथ जोड़कर उनका स्वागत किया। इंदिरा जानती थीं उनका करिश्मा अभी खत्म नहीं हुआ है।